कुरल काव्य भाग - 18 (निर्लोभिता)

तमिल भाषा का महान ग्रंथ

कुरल काव्य भाग - 18

निर्लोभिता

मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी

पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री

महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.)

आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है।

परिच्छेद: 18

निर्लोभिता

सन्मार्ग यः परित्यज्य परवित्ताभिलाषुकः।

खलत्वं वर्द्धते तस्य परिवारश्च नश्यति।।1।।

जो पुरुष सन्मार्ग को छोड़कर दूसरे की सम्पत्ति लेना चाहता है, उसकी दुष्टता बढ़ती जाएगी और उसका परिवार क्षीण हो जाएगा।

पद्य अनुवाद -

परधन लेने के लिए, जिसका मन ललचाय।

नीतिविमुख वह क्रूरतम, क्षीण-वंश हो जाय।।1।।

-

जुगुप्सा यस्य पापेभ्यो लोभं नैव करोति सः।

प्रवृत्तिस्तस्य भद्रस्य कुकर्मणि न जायते।।2।।

जो पुरुष बुराई से विमुख रहते हैं, वे लोभ नहीं करते और न दुष्कर्मों की ओर ही प्रवृत्त होते हैं।

पद्य अनुवाद -

जिसे घृणा है पाप से, वह नर करे न लोभ।

लगे न वह दुष्कर्म में, बढ़े न जिससे क्षोभ।।2।।

-

स्थिरसौख्याय यस्यास्ति स्पृहा तस्य सुमेधसः।

लोभो नास्त्यल्पभोगानां पापकर्मविधायिनः।।3।।

जो मनुष्य अन्य लोगों को सुखी देखना चाहते हैं, वे छोटे-मोटे सुखों का लोभ नहीं करते और न अनीति का ही काम करते हैं।

पद्य अनुवाद -

परसुख चिन्तक श्रेष्ठजन, त्यागें सदा अकार्य।

क्षुद्र सुखों के लोभ में, बनते नहीं अनार्य।।3।।

-

इन्द्रियाणि वशे यस्य चित्ते चातिविशालता।

स्वोपयोगीति बुद्धया स नान्यवस्तु जिघृक्षति।।4।।

जिन्होंने अपनी पाँचों इन्द्रियों को वश में कर लिया है और जिनकी दृष्टि विशाल है, वे यह कह कर दूसरे की वस्तुओं की कामना नहीं करते कि ओ हो! हमें इनकी अपेक्षा है।

पद्य अनुवाद -

जिसके वश में इन्द्रियाँ, तथा उदार विचार।

ईप्सित भी परवस्तु लूँ, उसके ये न विचार।।4।।

-

किं तया क्रियते मत्या लोभे का क्रमते सदा।

बोधेनैवंच किं तेन यद्यघाय समुद्यतः।।5।।

वह बुद्धिमान और समझदार मन किस काम का, जो लालच में फँस जाता है और अविचार के कामों के लिए उतारू होता है।

पद्य अनुवाद -

ऐसी बुद्धि न काम की, लालच जिसे फँसाय।

तथा समझ वह निन्द्य जो, दुष्कृति अर्थ सजाय।।5।।

-

सत्पथं ये सदा यान्ति सुकीर्तेश्चानुरागिणः।

तेऽपि नष्टा भविष्यन्ति यदि लोभात् कुचक्रिणः।।6।।

वे लोग भी, जो सुयश के भूखे होते हैं और सन्मार्ग पर चलते हैं; नष्ट हो जाएंगे, यदि धन के फेर में पड़कर कोई कुचक्र रचेंगे।

पद्य अनुवाद -

उत्तम पथ के जो पथिक, यश के रागी साथ।

मिटते वे भी लोभवश, रच कुचक्र निज हाथ।।।6।।

-

तृष्णया संचितं वित्तं मा गृध्य हितवांछया।

एवंभूतं धनं भोगे दुःखैस्तीक्ष्णतरं भवेत्।।7।।

लालच द्वारा एकत्रित किए हुए धन की कामना मत करो, क्योंकि भोगने के समय उसका फल तीखा होगा।

पद्य अनुवाद -

तृष्णा संचित द्रव्य का, भोगकाल विकराल।

त्यागो इसकी कामना, जिससे रहो निहाल।।7।।

-

लक्ष्मीर्भवेन्न मे न्यूना यद्येवं काङ्क्षसे ध्रुवम्।

मा भूस्त्वं ग्रस्तुमुद्युक्तो वैभवं प्रतिवेशिनः।।8।।

यदि तुम चाहते हो कि हमारी सम्पत्ति कम न हो, तो तुम अपने पड़ौसी के धन-वैभव को ग्रसने की कामना मत करो।

पद्य अनुवाद -

न्यून न हो मेरी कभी, लक्ष्मी ऐसी चाह।

करते हो तो छीन धन, लो न पड़ौसी आह।।8।।

-

सुनीतिं वेत्ति यः प्राज्ञः परस्वाद् विमुखो भवन्।

तद्गृहं ज्ञातमाहात्म्या लक्ष्मीरन्विष्यं गच्छति।।9।।

जो बुद्धिमान मनुष्य न्याय की बात को समझता है और दूसरों की वस्तुओं को लेना नहीं चाहता, लक्ष्मी उसकी श्रेष्ठता को जानती है और उसे ढूँढती हुई उसके घर आ जाती है।

पद्य अनुवाद -

विदितनीति परधनविमुख, जो बुध, तो सस्नेह।

ढूंढत-ढूंढत आप श्री, पहुँचे उसके गेह।।9।।

-

अदूरदर्शिनस्तृष्णा केवला नाशकारिणी।

निष्कामस्य महत्त्वन्तु सर्वेषां विजयि ध्रुवम्।।10।।

दूरदर्शिताहीन लालच नाश का कारण होता है, पर जो यह कहता है कि मुझे किसी वस्तु की आकांक्षा ही नहीं है, उस तृष्णाविजयी की ‘महत्ता’ सर्वविजयी होती है।

पद्य अनुवाद -

दूरदृष्टि से हीन का, तृष्णा से संहार।

निर्लोभी की श्रेष्ठता, जीते सब संसार।।10।।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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