कुरल काव्य भाग - 19 (पैशुन्यपरिहारः)

तमिल भाषा का महान ग्रंथ

कुरल काव्य भाग - 19

पैशुन्यपरिहारः

मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी

पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री

महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.)

आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है।

परिच्छेद: 19

पैशुन्यपरिहारः

शुभं न रोचते यस्मै कुकृत्येषु रतश्च यः।

सोऽपीदं मोदते श्रुत्वा यदसौ नास्ति सूचकः।।1।।

जो मनुष्य सदा अन्याय करता है और न्याय का कभी नाम भी नहीं लेता, उसको भी प्रसन्नता होती है, जब कोई कहता है - देखो! यह आदमी किसी की चुगली नहीं खाता।

पद्य अनुवाद -

‘खाता वह चुगली नहीं’, पर की ऐसी बात।

सुनकर खल भी फूलता, जिसे न नीति सुहात।।1।।

-

शुभादशुभसंसक्तो नूनं निन्द्यस्ततोऽधिकः।

पुरः प्रियम्वदः किन्तु पृष्ठे निन्दापरायणः।।2।।

सत्कर्म से विमुख हो जाना और कुकर्म करना निस्सन्देह बुरा है, पर मुख पर हँस कर बोलना और पीठ पीछे निन्दा करना उससे भी बुरा है।

पद्य अनुवाद -

परहित तज, पर का अहित, करना निन्दित काम।

मधुमुख पर उससे बुरा, पीछे निन्दाधाम।।2।।

-

अलीकनिन्दितालापिजीवितान् मरणं वरम्।

एवं कृते न नश्यन्ति पुण्यकार्याणि देहिनः।।3।।

झूठ और चुगली के द्वारा जीवन व्यतीत करने से तो तत्काल ही मर जाना अच्छा है, क्योंकि इस प्रकार मर जाने से शुभकर्म का फल मिलेगा।

पद्य अनुवाद -

मृषा (झूठा), अधम जीवन बुरा, उससे मरना श्रेष्ठ।

कारण ऐसी मृत्यु से, बिगड़ें कार्य न श्रेष्ठ।।3।।

-

अवाच्यं यदि केनापि प्रत्यक्षे गदितं त्वयि।

तस्य पृष्ठे तथापि त्वं मा भूर्निन्दापरायणः।।4।।

पीठ पीछे किसी की निन्दा न करो, चाहे उसने तुम्हारे मुख पर ही तुम्हें गाली दी हो।

पद्य अनुवाद -

मुख पर ही गाली तुम्हें, दीनो बिना विचार।

तो भी उसकी पीठ पर, बनो न निन्दाकार।।4।।

-

मुखेन भाषतां वह्वीं शुभोक्तिं पिशुनो वरम्।

सूचयत्येव तज्जिह्वा निम्नत्वं किन्तु चेतसः।।5।।

मुख से चाहे कोई कितनी ही धर्म कर्म की बातें करे, पर उसकी चुगलखोर जिह्वा उसके हृदय की नीचता को प्रगट कर ही देती है।

पद्य अनुवाद -

मुख से कितनी ही भली, यद्यपि बोले बात।

पर जिह्वा से चुगल का, नीचहृदय खुल जात।।5।।

-

त्वया यदि परे निन्द्याः स्युस्त्वां तेऽपि रुपान्विताः।

दर्शयित्वा महादोषान् निन्दिष्यन्ति तवाहिताः।।6।।

यदि तुम दूसरे की चुगली करोगे, तो वह तुम्हारे दोषों को खोज कर उनमें से बुरे दोषों को प्रगट कर देगा।

पद्य अनुवाद -

निन्दाकारी अन्य के, होंगे तो स्वयमेव।

खोज खोज चिल्लायेंगे, वे भी तेरे एब।।।6।।

-

मैत्रीरसं न जानाति न चांपि मधुरं वचः।

स एव भेदमाधत्ते मित्रयोरेककण्ठयोः।।7।।

जो मधुर वचन बोलना और मित्रता करना नहीं जानते, वे चुगली करके फूट का बीज बोते हैं और मित्रों को एक दूसरे से जुदा कर देते हैं।

पद्य अनुवाद -

मैत्री रस अनभिज्ञ जो, उक्ति माधुरीहीन।

वह ही बो कर फूट को, करता तेरह-तीन।।7।।

-

पुरस्तादेव सर्वेषां मित्रं निन्दन्ति ये नराः।

तैः शत्रवः कथं निन्द्या न स्युरिति विचार्यताम्।।8।।

जो लोग अपने मित्रों के दोषों को स्पष्ट रूप से सबके सामने कहते हैं, वे अपने वैरियों के दोषों को भला कैसे छोड़ेंगे?

पद्य अनुवाद -

खुल कर करते मित्र की, जो अकीर्ति का गान।

वे कब छोड़ें शत्रु का, अपयश का व्याख्यान।।8।।

-

निन्दाकर्तुः पदाघातं सहते स्वोरसि क्षमा।

तद्भारायैव सा धर्मं वीक्षते किं मुहुर्मुहुः।।9।।

पृथ्वी अपनी छाती पर निन्दा करने वाले के पदाघात को धैर्य के साथ किस प्रकार सहन करती है! क्या चुगलखोर के भार से अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए ही धर्म की ओर बार-बार ताकती है?

पद्य अनुवाद -

धैर्य सहित उर में सहे, निन्दक पाद-प्रहार।

धर्म ओर फिर-फिर तके, भू उतारने भार।।9।।

-

अन्यदीयमिवात्मीयमपि दोषं प्रपश्यता।

कः समः खलु मुक्तोऽयं दोषवर्गेण सर्वदा।।10।।

यदि मनुष्य अपने दोषों की विवेचना उसी प्रकार करे, जिस प्रकार वह अपने वैरियों के दोषों की करता है, तो क्या उसे कभी कोई दोष स्पर्श कर सकेगा?

पद्य अनुवाद -

अन्य मनुज के दोष सम, जो देखे निज दोष।

उस समान कोई नहीं, भू-भर में निर्दोष।।10।।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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