अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (8)



अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (8)
(आचार्य माघनन्दीकृत)  

 


तीर्थात्तम-भवै-नीरै- क्षीर-वारिधि-रूपकैः।

स्नपयामि सुजन्माप्तान् जिनान् सर्वार्थ-सिद्धिदान्।

तीर्थ - तीर्थ

उत्तम - उत्तम

भवैः - उत्पन्न

नीरैः - जल के द्वारा

क्षीर - क्षीर

वारिधि - सागर के द्वारा

रूपकैः - समान

स्नपयामि - अभिषेक करता हूँ

सुजन्म - मंगल अर्थात् अन्तिम जन्म को

आप्तान् - प्राप्त किया है

जिनान् - जिनेन्द्र भगवान का

सर्वार्थ - सभी प्रकार की

सिद्धिदान् - सिद्धि को देने वाले

अर्थ - क्षीर सागर के समान उत्तम तीर्थ के द्वारा उत्पन्न जल के द्वारा जो सभी प्रकार की सिद्धि को देने वाले हैं और जिन्होंने मंगल अर्थात् अन्तिम जन्म को प्राप्त किया है, ऐसे जिनेन्द्र भगवान का मैं अभिषेक करता हूँ।

ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तान् जलेन स्नपयामि स्वाहा।


।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)