अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (9)
अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (9)
(आचार्य माघनन्दीकृत)
सकल-भुवन-नाथं तं जिनेन्द्रं सुरेन्द्रै-
रभिषव-विधि-माप्तं स्नातकं स्नापयामः।
यदभिषवन-वारां, बिन्दु-रेकोऽपि नृणाम्,
प्रभवति हि विधातुं भुक्तिसन्मुक्तिलक्ष्मीम्।।
सकल - सारे
भुवन - लोकों
नाथम् - स्वामी
तं - उन
जिनेन्द्रम् - जिनेन्द्र भगवान को
सुरेन्द्रैः - सुरेन्द्रों के द्वारा
अभिषव - अभिषेक की
विधिम् - विधि को
आप्तम् - प्राप्त किया गया
स्नातकम् - स्नातक अर्थात् 13वें व 14वें गुणस्थान वाले
स्नापयामः - अभिषेक करते हैं
यत् - जो
अभिषवन - अभिषेक का
वाराम् - जल
बिन्दुः - बिन्दु
एकः - एक
अपि - भी
नृणाम् - मनुष्यों के लिए
प्रभवति - सक्षम है
हि - निश्चय से
विधातुं - देने में
भुक्ति - सांसारिक भुक्ति
सन्मुक्ति - सद् मुक्ति रूपी
लक्ष्मीम् - लक्ष्मी को
अर्थ - सारे लोकों के स्वामी उन स्नातक अर्थात् 13वें व 14वें गुणस्थान वाले जिनेन्द्र भगवान को सुरेन्द्रों के द्वारा अभिषेक की विधि को प्राप्त किया गया, हम उनका अभिषेक करते हैं; जिस अभिषेक के जल की एक बिन्दु भी मनुष्यों के लिए निश्चय से सांसारिक भुक्ति और सद् मुक्ति अर्थात् मोक्ष रूपी लक्ष्मी को देने में सक्षम है।
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं झ्वीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं हं झं झ्वीं क्ष्वीं हं सः झं वं ह्रः यः सः क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्षः क्ष्वीं ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रें ह्रैं ह्रौं ह्रं ह्रः ह्रीं द्रां द्रीं नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठः ठः इति लघुशान्तिमन्त्रेणाभिषेकं करोमि।
(यहां शान्तिधारा करें)
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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