अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 15

  अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 15

(आचार्य माघनन्दीकृत)


मुक्तिश्री-वनिताकरोदकमिदं पुण्यांकुरोत्पादकम्,

नागेन्द्र-त्रिदशेन्द्रचक्रपदवी-राज्याभिषेकोदकम्।

सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शन-लतासंवृद्धि-सम्पादकम्,

कीर्तिश्री-जयसाधकं तव जिनस्नानस्य गन्धोदकम्।।

मुक्तिश्री -मोक्ष रूपी लक्ष्मी के समान

वनिता - पत्नी के

कर- हाथ में

उदकम् - लिया गया जल

इदं - यह

पुण्य - पुण्य रूपी

अंकुर - अंकुर को

उत्पादकम् - उत्पन्न करने वाला

नागेन्द्र - धरणेन्द्र

त्रिदशेन्द्र - देवेन्द्र

चक्रपदवी - चक्रवर्ती के पद को देने वाले

राज्य अभिषेक - राज्य अभिषेक का

उदकम् - जल

सम्यक् ज्ञानचरित्रदर्शन - समीचीन ज्ञान, चरित्र, दर्शन की

लतां - लता को

संवृद्धि - बढ़ाने में

सम्पादकम् -सम्पादन करने वाला है

कीर्ति - कीर्ति को

श्री - लक्ष्मी को देने वाला है

जयसाधकं - विजय दिलाने वाला है

तव - आपका

जिनस्नानस्य - जिनेन्द्र भगवान के स्नान का

गन्ध - सुगन्धित

उदकम् - जल

अर्थ - हे जिनेन्द्र भगवान! मोक्ष रूपी लक्ष्मी के समान पत्नी के हाथ में लिया गया यह जल पुण्य रूपी अंकुर को उत्पन्न करने वाला है। धरणेन्द्र, देवेन्द्र, चक्रवर्ती के पद को देने वाले राज्याभिषेक का जल समीचीन ज्ञान, चरित्र, दर्शन की लता को बढ़ाने के कार्य का सम्पादन करने वाला है। आपके स्नान का सुगन्धित जल कीर्ति को व लक्ष्मी को देने वाला है तथा विजय दिलाने वाला है। 

(गन्धोदक शिर पर लगावें)

ऊँ ह्रीं जिनगन्धोदकं स्वललाटे धारयामि।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।


सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

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