अभिषेक पाठ -अर्थ सहित - 14

  अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 14

(आचार्य माघनन्दीकृत)

जल-गन्धाक्षतैः पुष्पैश्-चरु-दीप - सुधूपकैः।

फलै-रर्घै-र्जिनमर्चेज जन्मदुःखापहानये।।

जल - जल से

गन्ध - गन्ध अर्थात् चंदन से

अक्षतैः - अक्षत से

 पुष्पैः - पुष्पै से

चरु - नैवेद्य से

सुधूपकैः - अच्छी धूप से

दीप - दीप से

फलैः - फल से

अर्घै - आठों द्रव्यों को मिला कर बने अर्घ से

र्जिनम् - जिनेन्द्र भगवान की

अर्चेत् - अर्चना करनी चाहिए

जन्म - जन्म रूपी

दुःखः-दुःख का

आपहानये - नाश करने के लिए

अर्थ - जन्म रूपी दुःख का नाश करने के लिए जल से, गन्ध अर्थात् चंदन से, अक्षत से, पुष्प से, नैवेद्य से, अच्छी धूप से, दीप से, फल से और आठों द्रव्यों को मिला कर बने अर्घ से जिनेन्द्र भगवान की अर्चना करनी चाहिए।

ऊँ ह्रीं श्रीपीठस्थितजिनायार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा


नत्वा परीत्य निज-नेत्र ललाटयोश्च,

व्याप्तं क्षणेन हरता-दघ-संचयं मे।

शुद्धोदकं जिनपते तव पाद-योगाद्,

भूयाद् भवातप-हरं धृत-मादरेण।।

नत्वा - नमस्कार करके

 परीत्य - प्रदक्षिणा करके

 निज-नेत्र - अपने नेत्रों पर

ललाट - ललाट पर

योः - दोनों

च -और 

व्याप्तं - लगाया है

क्षणेन - क्षण भर में

हरतात् - हरण करता है

अघ - पापों का

संचयं - संचित

मे - मेरे

शुद्ध उदकं - शुद्ध जल

जिनपते -

तव - आपका

पाद-योगात् - चरणों से

भूयात् - हो

भव आतप-हरं - संसार के आतप को हरण करने वाला 

धृतम् - धारण किया है

आदरेण - आदर से

अर्थ - हे जिनेन्द्र भगवान! मैंने नमस्कार करके, प्रदक्षिणा करके आपके चरणों के योग से बना जो यह शुद्ध जल अपने दोनों नेत्रों पर और ललाट पर लगाया है, आदर से धारण किया है, वह क्षण भर में मेरे संचित पापों को हरण करने वाला, संसार के आतप को हरण करने वाला हो।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।


सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

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