अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 16
अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 16
(आचार्य माघनन्दीकृत)
इमे नेत्रे जाते सुकृत-जलसिक्ते सफलिते,
ममेदं मानुष्यं कृतिजन-गणादेय-मभवत्।
मदीयाद् भल्लाटा-दशुभतर-कर्माटन-मभूत्,
सदेदृक् पुण्यार्हन् मम भवतु ते पूजन-विधौ।।
इमे - ये
नेत्रे - दोनों नेत्र
जाते - हो गए हैं
सुकृत - पवित्र
जलसिक्ते - जल के सिंचन से
सफलिते - सफल
मम - मेरा
इदं - यह
मानुष्यं - मानुष्य
कृति - का जन्म
जनगण - लोगों के समूह के द्वारा
आदेयम् - ग्रहण करने योग्य
अभवत्- हो गए हैं
मदीयात् - मेरे
भल्लाटात् - शरीर से
अशुभतर् - अशुभतर
कर्माटनम् - कर्मों से
अभूत् - रहित हो गए हैं
सदा - सदा
इदृक् - इस प्रकार का
पुण्य - पुण्य
अर्हन् - हे अरिहंत भगवान!
मम - मेरे
भवतु - हों
ते - आपकी
पूजनविधौ - पूजनविधि से
अर्थ - ये मेरे दोनों नेत्र पवित्र जल के सिंचन से सफल हो गए हैं। मेरा यह मनुष्य जन्म लोगों के समूह के द्वारा ग्रहण करने योग्य हो गया है। मेरे शरीर से अशुभतर कर्म अशुभता से रहित हो गए हैं। हे अरिहंत भगवान! आपकी पूजनविधि से मैं सदा इस प्रकार के पुण्य कार्य में लगा रहूँ।
।।पुष्पाँजलिं क्षिपामि।।
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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