वीर शासन जयंती
वीर शासन जयंती की बधाई
श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के शुभ दिन पर श्री वीर प्रभु की दिव्य देशना 66 दिनों के अंतराल के बाद विपुलाचल पर्वत पर समवशरण के मध्य खिरी थी।
दीक्षा लेने के बाद महावीर स्वामी ने मौन व्रत अंगीकार किया। बारह वर्ष की तपस्या के बाद ऋजुकूला नदी के तट पर शुक्ल ध्यान पूर्वक केवलज्ञान प्राप्त किया। उसी समय इंद्र की आज्ञा से कुबेर ने समवशरण की रचना की। लेकिन 66 दिन तक प्रभु की वाणी नही खिरी। इंद्र ने अवधि ज्ञान से यह जाना कि यहां गणधर का अभाव है। गणधर होने की योग्यता इंद्रभूति गौतम में है, ऐसा जानकर युक्ति पूर्वक उनसे एक श्लोक का अर्थ पूछा।
इंद्रभूति गौतम ने श्लोक का अर्थ तो उस समय नहीं बताया लेकिन महावीर प्रभु के समवशरण में अपने 500 शिष्यों सहित पधार गये और वहां समवशरण की अद्भुत रचना एवं मानस्तंभ को देखते ही उनका मान गलित हो गया। उसी समय इंद्रभूति गौतम ने जैनेश्वरी दीक्षा धारण की और अनेक प्रकार से महावीर स्वामी की स्तुति की।
उन्हें गणधर पद की प्राप्ति हुई और वे प्रथम गणधर कहलाये। उसी समय 18 महाभाषा और 700 लघुभाषा सहित दिव्य ध्वनि खिरने लगी। गणधर गौतम स्वामी ने अंतर्मुहूर्त में द्वादशांग रूप ‘जिनवाणी’ की रचना की।
आज भी श्रावण कृष्ण प्रतिपदा का दिन वीर शासन जयंती के रूप में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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