जैन रानी - रानी अब्बक्का चौटा
जैन रानी - रानी अब्बक्का चौटा
क्या हमें जैनों को यह ज्ञात है कि हम अपनी एक महान जैन रानी - रानी अब्बक्का चौटा - की 500वीं जयंती (1525-2025) मना रहे हैं? क्या हम जैन समाज को यह भी ज्ञात है कि जैन कुल की यह वीरांगना, जो कर्नाटक के चौटा वंश से संबंध रखती थीं, को हिंदुस्तान की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा प्राप्त हैं? यह वही रानी हैं, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली आक्रांताओं को अनेक बार पराजित किया और अपने राज्य उल्लाल की स्वतंत्रता को बनाए रखा।
रानी अब्बक्का चौटा दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र में स्थित उल्लाल की शासिका थीं। चौटा वंश जैन धर्म का अनुयायी था और मातृसत्तात्मक परंपरा का पालन करता था, जिसमें सत्ता पुत्र की बजाय पुत्री को सौंपी जाती थी। रानी अब्बक्का को शासन सौंपा गया और उन्होंने जैन सिद्धांतों - अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य और सहिष्णुता - के आधार पर राज्य चलाया। लेकिन जब पुर्तगाली शासकों ने उल्लाल पर कर थोपने की कोशिश की, तो उन्होंने प्रतिकार करते हुए सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ किया।
पुर्तगालियों के लिए उल्लाल एक सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था। रानी अब्बक्का ने न केवल उनका विरोध किया, बल्कि एक बहु-धार्मिक सेना संगठित की, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम और जैन सेनानायक शामिल थे। उनके मुस्लिम सेनापति और अन्य सहयोगियों ने उनके साथ मिलकर एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया। उनकी युद्ध नीति, नौसैनिक समझ और गुरिल्ला रणनीति ने कई बार पुर्तगालियों को करारी शिकस्त दी। उन्होंने मंगळुरु स्थित पुर्तगाली किले पर भी सफल हमला कर उनके गोदाम जलाए और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
अंततः उन्हें विश्वासघात का सामना करना पड़ा और वे बंदी बना ली गईं। जेल में ही उन्होंने प्राण त्यागे, लेकिन उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। उनका नाम आज भी तुलु लोकगीतों और कर्नाटक की लोककथाओं में सम्मान के साथ लिया जाता है।
भारत सरकार ने 15 दिसंबर 2023 को रानी अब्बक्का चौटा की स्मृति में 5 रुपए मूल्य का यादगारी डाक टिकट जारी किया। यह टिकट भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी को राष्ट्रीय सम्मान प्रदान करने का प्रतीक है। इससे पहले 15 जनवरी 2003 को उनके नाम पर एक विशेष कवर भी जारी किया गया था।
आज, जब हम उनकी 500वीं जयंती मना रहे हैं, यह हम जैन समाज के लिए आत्ममंथन का अवसर है। क्या हमने अपने इतिहास की इस नायिका को यथोचित सम्मान दिया? अब समय आ गया है कि हम संगठित होकर रानी अब्बक्का चौटा की गाथा को देशभर में पहुँचाएं, उनके नाम पर शोध संस्थान, स्मारक और सांस्कृतिक आयोजन करें, और इस वर्ष को राष्ट्रीय जैन गौरव वर्ष के रूप में मनाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि हिंदुस्तान में विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम की पहली मशाल एक जैन रानी ने जलाई थी।
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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