पाँच (5) के अंक से स्वाध्याय 46-77

पाँच (5) के अंक से स्वाध्याय 46-77  

पांच होते हैं - 

 47. वर्ण पाँच - 1. काला, 2. पीला, 3. नीला, 4. सफेद, 5. लाल।

 48. भूत पाँच - 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश। (अन्य मतों के अनुसार)

 49. परावर्तन पाँच - 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भव, 5. भाव। 

 50. दान पाँच - 1. दयादत्ति, 2. पात्रदत्ति, 3. समदत्ति, 4. अन्वयदत्ति, 5. सकलदत्ति।

 51. पाण्डव पाँच - 1. युधिष्ठिर, 2. भीम, 3. अर्जुन, 4. नकुल, 5. सहदेव। 

 52. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच श्रुत केवली - 1. विश्वनन्दी, 2. नन्दीमित्र, 3.अपराजित, 4. गोवर्धन, 5. भद्रबाहु। 

 53. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच महामुनि - 1. नक्षत्र, 2. जयपाल, 3. पाण्डु, 4.ध्रुवसेन, 5. कंसाचार्य दशांग विद्या के पारगामी। 

 54. तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक - 1. गर्भ, 2. जन्म, 3. तप, 4. ज्ञान, 5. मोक्ष। 

 55. कर्म इन्द्रियाँ पाँच - 1. पैर, 2. हाथ, 3. वचन, 4. गुदा, 5. उपस्था। 

 56. ऊँ में पंच परमेष्ठी सूचक पाँच अक्षर हैं - 1. अ, 2. अ, 3. आ, 4. उ, 5. म।

57. अ, सि, आ, उ, सा में पाँच अक्षर पंच परमेष्ठी सूचक हैं- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु। 

 58. अभक्ष्य के पाँच भेद -  1. बहुस्थावर हिंसाकारक, 2. त्रसहिंसाकारक, 3.प्रमादकारक (नशाकारक), 4. अनिष्टकारक, 5. अनुपसेव्य।

 59. नाम कर्म की जाति अथवा शरीर प्रकृतियाँ पाँच - 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. त्रि इन्द्रिय, 4. चतुर्रिन्द्रिय, 5. पंचेन्द्रिय।

 60. नाम कर्म की बन्धन प्रकृतियाँ पाँच - 1. औदारिक बन्धन, 2. वैक्रियिक बन्धन, 3. आहारक बन्धन, 4. तैजस बन्धन, 5. कार्मण बन्धन ।

 61. पाँच संघात प्रकृतियाँ - 1. औदारिक संघात, 2. वैक्रियिक संघात, 3. आहारक संघात, 4. तैजस संघात, 5. कार्मण संघात।

 62. चारित्र के पाँच भेद - 1. सामायिक, 2. छेदोपस्थापना, 3. परिहारविशुद्धि, 4.सूक्ष्म संपराय, 5. यथाख्यात।  

 63. ऋद्धि प्राप्त आर्यों के पाँच भेद - 1. क्षेत्र आर्य, 2. जाति आर्य, 3. कर्म आर्य, 4.चरित्र आर्य, 5. दर्शन आर्य।

 64. विवेक पाँच प्रकार - 1. इन्द्रिय विवेक, 2. कषाय विवेक, 3. उपाधि विवेक, 4.भक्तपान विवेक, 5. देह विवेक।

 65. जिस साधु ने पंडितमरण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, उसको इन पाँच शुद्धियों को धारण करना चाहिए - 1. आलोचना शुद्धि, 2. शैया संस्तर शुद्धि, 3.उपकरण शुद्धि, 4. भुक्ति-पान शुद्धि, 5. वैयावृत्य करण शुद्धि।

 66. निर्यापकाचार्य के अन्वेषण करने के लिए विहार करने वाले की विधि के पाँच प्रकार - 1. रात्रि प्रतिमा कुशल, 2. स्वाध्याय कुशल, 3. प्रश्न कुशल, 4. स्थडिलशायी, 5. आसक्ति रहित।

 67. तीर्थंकर की प्रथम पारणा के दिन आहारदाता के यहाँ नियम से पँच आश्चर्य होते हैं - 1. रत्न वृष्टि 125000000 उत्कृष्ट व (1,25,000) जघन्य, 2. देव दुन्दुभि, 3. दिव्य पुष्पों की वृष्टि, 4. जय-जय का उद्घोष, 5. शीतल सुगन्धित वायु का बहना। 

 68. केवलज्ञान होते ही तीर्थंकर का शरीर 5,000 धनुष प्रमाण ऊर्ध्व गमन करता है। 

 69. कुन्दकुन्द आचार्य गुरु की परम्परा पाँच - 1. भद्रबाहु, 2. गुप्तिगुप्त, 3. माघनन्दी, 4. जिनचन्द्र, 5. कुन्दकुन्द। 

 70. केवल एक भव अवतार लेकर मोक्ष जाने वाले एक भवावतारी पाँच - 1. पाँचवे स्वर्ग के लोकान्तिक देव, 2. दक्षिणेन्द्र, 3. इन्द्र की शचि, 4. लोकपाल, 5. पाँच अनुत्तर विमानों के देव।

 71. समवाय पाँच - 1. स्वभाव, 2. पुरुषार्थ, 3. काललब्धि, 4. भवितव्य, 5. निमित्त।

 72. धर्म के पाँच अंग निम्न हैं - 1. णमोकार मन्त्र जैसा मन्त्र नहीं। 2. वीतरागी जैसे देव नहीं। 3. निर्ग्रन्थ जैसे गुरु नहीं। 4. अहिंसा जैसा धर्म नहीं। 5. आत्मध्यान जैसा ध्यान नहीं।

 73. जैन धर्म की पाँच विशेषतायें हैं - 1. जैन धर्म भौतिक सम्पदा का प्रलोभन नहीं देता है। 2. जैन धर्म अवतारवाद को नहीं मानता है। 3. जैन धर्म अतिशय को नहीं मानता है। 4. जैन धर्म चमत्कार को भी नहीं मानता है। 5. जैन धर्म कर्तावाद को नहीं मानता है। 

 74. दाता के पाँच दूषण - 1. विलम्ब से देना, 2. विमुख होकर देना, 3. दुर्वचन, 4. निरादर, 5. देकर पश्चात्ताप करना।

 75. निद्रा के पाँच भेद - 1. निद्रा, 2. निद्रा-निद्रा, 3. प्रचला, 4. प्रचला-प्रचला, 5.स्त्यानगृद्धि। 

 76. अन्य दर्शन का स्वरूप - 1. न्याय वैशेषिक केवल नैगम नय के, 2. अद्वैतवादी और सांख्य केवल संग्रह नय के, 3. चार्वाक लोग केवल व्यवहार नय के, 4. बौद्ध लोग केवल ऋजु सूत्र नय के, 5. वैयाकरण केवल शब्द नय के।

 77. मन के द्वारा परिणाम परिवर्तित होते हैं, उसकी पाँच भूमिकायें हैं - 1. क्षिप्त, 2. विक्षिप्त, 3. मूढ़, 4. चित्त निरोध, 5. एकाग्रता। 

उपरोक्त भूमिकाओं में मन घूमता रहता।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

विनम्र निवेदन

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