पाँच (5) के अंक से स्वाध्याय 78-108

पाँच (5) के अंक से स्वाध्याय 78-108 

78. लब्धअपर्याप्तक के भवों की संख्या - एक इन्द्रिय में 66132 भव $ दो इन्द्रिय में 80 भव $ तीन इन्द्रिय में 60 भव $ चार इन्द्रिय में 40 भव $ पाँच इन्द्रिय में 24 भव = कुल योग- 66336 भव।

 79. पाँच सूना - 1. बुहारी देना, 2. अग्नि जलाना, 3. जल भरना, 4. कूटना, 5.पीसना।

 80. पैंतालीस लाख योजन विस्तार है - 1. सीमान्तक इन्द्रक बिल (प्रथम नरक), 2. ढाई द्वीप, 3. प्रथम स्वर्ग का ऋजुनामा विमान, 4. सिद्ध शिला, 5. सिद्ध क्षेत्र। 

 81. जीव के साथ संबंधित मुख्य वर्गणायें पाँच प्रकार की हैं - 1. आहार वर्गणा, 2. भाषा वर्गणा, 3. मनो वर्गणा, 4. तैजस वर्गणा, 5. कार्मण वर्गणा।

 82. अर्थ-व्यंजन-योग संक्रान्ति - 1. अर्थ नाम ध्यान करने योग्य द्रव्य व पर्याय का है। 2. व्यंजन नाम वचन का है। 3. योग नाम काय, वचन, मन की क्रिया का है। 4.संक्रान्ति नाम पलटने का है। 5. इनमें जो द्रव्य को छोड़ उसकी पर्याय को ध्याता है तथा पर्याय को छोड़कर द्रव्य को ध्याता है तो अर्थ संक्रान्ति है।

 83. मोक्ष पाँच प्रकार का होता है - 1. शक्ति मोक्ष, 2. दृष्टि मोक्ष, 3. मोह मोक्ष, 4. जीवन मोक्ष, 5. विदेह मोक्ष। 

 84. साधु की पाँच प्रकार की आहार चर्या - 1. भ्रामरी, 2. गर्त्तपूरणी, 3. उदराग्नि प्रशमन, 4. अक्षमृक्षणी, 5. गोचरी। 

 85. साध्वाभास के 5 भेद - 1.पार्श्वस्थ, 2.संस्कृत, 3 अवसन्न, 4.मृगचारी, 5.कुशील। 

 86. निमित्त नैमित्तिक व कालिक क्रियाओं के भेद - 1. दैनिक, 2. रात्रिक, 3.पाक्षिकी, 4. चातुर्मासकी, 5. वार्षिकी। 

 87. रंग, रूप, रुपया, राग और रसना - इन पाँच ’र’ में लिप्तता संसार बढ़ाने का कारण हैं। 

 88. अजीव द्रव्य पाँच - 1. पुद्गल, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश, 5. काल।

 89. अमूर्तिक द्रव्य - 1. जीव, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश, 5. काल।

 90. (इज्या) देव पूजा - 1. नित्यमह, 2. चतुर्मुख, 3. कल्पद्रुम, 4. अष्टान्हिका, 5.इन्द्रध्वज।

 91. ज्ञानावरण कर्म की प्रकृतियाँ - 1. मतिज्ञानावरण, 2. श्रुतज्ञानावरण, 3.अवधिज्ञानावरण, 4. मनःपर्ययज्ञानावरण, 5. केवलज्ञानावरण।

 92. पिंडस्थ ध्यान की धारा पाँच - 1. पृथ्वी धारणा, 2. अग्नि धारणा, 3. पवन धारणा, 4. जल धारणा, 5. तत्त्वरूपवती धारणा।

 93. ब्रह्मचारी के पाँच भेद - 1. उपनय, 2. अवलम्ब, 3. अदीक्षा, 4. गूढ, 5. नैष्ठिक।

 94. द्विदल दोष के पाँच भेद - 1. अन्न द्विदल, 2. काष्ठ, 3. हरी, 4. शिखरनी, 5.काँजी।

 95. उत्तम भावना - 1. तपोभावना, 2. श्रुतभावना, 3. सत्यभावना, 4. एकत्व भावना, 5. धृतिबल भावना।

 96. संक्लिष्ट (कुत्सित) भावना के पाँच भेद - 1. कंदर्पी, 2. कैल्विषी, 3.अभियोगिकी, 4. आसुरी, 5. संमोही।

 97. माया के पाँच भेद - 1. निवृत्ति, 2. उपधि, 3. सातिप्रयोग, 4. प्रणिधि, 5.प्रतिकुंचन।

 98. विनय के पाँच भेद - 1. लोकानुवृत्ति, 2. अर्थनिमित्तक, 3. कामतन्त्र, 4. भय, 5.मोक्ष।

 99. तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि पाँच - 1. कैलाशपर्वत, 2. गिरनार, 3. चम्पापुर, 4.पावापुर, 5. सम्मेदशिखर। 

 100. पूजा के अंग - 1. आह्वानन, 2. स्थापना, 3. सन्निधिकरण 4. पूजन, 5.विसर्जन।

 101. महावीर के पाँच नाम - 1. वर्धमान, 2. वीर, 3. अतिवीर, 4. सन्मति, 5.महावीर।

 102, क्षुल्लक के पाँच भेद - 1. वानप्रस्थ क्षुल्लक, 2. नैष्ठिक क्षुल्लक, 3. गूढ़ क्षुल्लक, 4. वर्णी, 5. साधक क्षुल्लक।

 103. पाँच अणुव्रत में प्रसिद्ध - 1. अहिंसाणुव्रत- मातंग। 2.सत्याणुव्रत - धनदेव। 3. अचौर्य व्रत - वारिषेण। 4. ब्रह्मचर्य व्रत - नीलीबाई। 5. परिग्रह परिमाण व्रत - जयकुमार सेनापति।

 104. पाँच पापों में प्रसिद्ध - 1. हिंसा में - धनश्री। 2. झूठ में - सत्यघोष। 3. चोरी में - तापस। 4. कुशील में - यमपाल। 5. परिग्रह में - श्मश्रु नवनीत ब्राह्मण।

105. प्राकृत भाषा के पाँच भेद - 1. मागधी, 2. अर्धमागधी, 3. शौरसैनी, 4. पैशाची, 5.चूलिका।

 106. पाँच समझने योग्य बातें - 1. मिथ्यात्व का वमन, 2. सम्यक्त्व का उत्पन्न, 3.कषायों का शमन, 4. इन्द्रियों का दमन, 5. आत्मानुभव।

 107. पाँच त्यागने योग्य बातें - 1. (ककार) -  1. कीर्ति, 2. कंचन, 3. कामिनी, 4. कुटुम्ब, 5. करिश्मा।

 2. (पकार) - 1. प्रदर्शन, 2. प्रतिष्ठा, 3. प्रतिस्पर्धा, 4. पाप, 5. पैशून्य। 

 3. (मकार) - 1. मंच, 2. माला, 3. माईक, 4. मान, 5. माया।

 108. पाँच ग्रहण करने योग्य बातें - 1. सम्यक्त्व, 2. श्रुत, 3. समता, 4. शान्ति, 5.सुख।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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