अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (10)

अभिषेक पाठ- अर्थ सहित (10) (आचार्य माघनन्दीकृत) पानीय-चन्दन-सदाक्षत-पुष्पपुंज- नैवेद्य-दीपक-सुधूप-फल-व्रजेन। कर्माष्टक-क्रथक-वीर-मनन्त-शक्तिं सम्पूजयामि महसा महसां निधानम्।। पानीय - जल चन्दन - चन्दन सत् - अक्षय अक्षत - अक्षत पुष्प-पुंज - पुष्पों का समूह नैवेद्य - नैवेद्य दीपक - दीपक सुधूप - अच्छी धूप फल - फल व्रजेन - समूह से कर्म - कर्म अष्टक - आठ क्रथक - नाश करके वीरम् - बलशाली अनन्त - अनन्त शक्तिम् -शक्ति को सम्पूजयामि - मैं पूजा करता हूँ महसा - उत्साह से महसाम् - आत्मतेज निधानम् - भण्डार अर्थ - मैं जल, चन्दन, अक्षय अक्षत, पुष्पों के समूह, नैवेद्य, दीपक, अच्छी धूप और फल के समूह से आठ बलशाली कर्मों का नाश करने वाले, अनन्त शक्ति वाले, उत्साह वाले आत्मतेज के भण्डार जिनेन्द्र भगवान की पूजा करता हूँ । ऊँ ह्रीं अभिषेकान्ते श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्योऽर्घ्यं निर्व. स्वाहा ।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।। सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏 विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से ...