प्रेम का घोड़ा
प्रेम का घोड़ा एक व्यापारी को अपने घोड़े से अनंत प्रेम था। एक बार वह घोड़े को लेकर यात्रा पर निकला। रात उसने एक गाँव में बिताई। लोगों की निगाह उसके घोड़े पर पड़ते ही वे उसकी ओर आकर्षित हो जाते थे। घोड़ा अत्यन्त सुंदर और शक्तिशाली था। उसकी चमक, उसकी चाल, उसकी तेजी, उसकी शान और पैरों की टॉप ने लोगों को मोह लिया। जो भी उस घोड़े को देखता, वह ईर्ष्या से भर जाता और सोचता कि यह तो मेरे पास होना चाहिए था। इसके पास क्यों है ? गाँंव के बड़े-बड़े लोगों ने आकर उससे कहा कि जो भी कीमत लेनी है ले लो लेकिन यह घोड़ा हमें दे दो। व्यापारी ने कहा कि इस घोड़े से मुझे अत्यंत गहन प्रेम है और प्रेम कभी भी बेचा नहीं जाता। जो बेचा जाता है, वह प्रेम नहीं है। लोगों का मन ईर्ष्या से भर गया। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया कि किसी भी प्रकार से इस घोड़े को प्राप्त करना है। दूसरे गाँव में पहुँचकर व्यापारी ने घोड़े को रात में एक वृक्ष से बांधा और स्वयं भी वहीं पर लेट गया। सुबह जब वह उठा तो घोड़ा वहाँ पर नहीं था। गाँव के लोग वहाँ पर एकत्रित होकर कहने लगे कि यह तो बहुत दुःख की बात है कि हमारे गाँव में तुम्हारा घोड़ा चोरी चला गया है। यह ...