अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 13

  अभिषेक पाठ- अर्थ सहित - 13

(आचार्य माघनन्दीकृत)

स्नानं विधाय भवतोऽष्ट-सहस्र-नाम्ना-

मुच्चारणेन मनसो वचसो विशुद्धिम्।

जिघृणु-रिष्ट-मिन तेऽष्ट-तयीं विधातुं,

सिंहासने विधि-वदत्र निवेशयामि।।

स्नानं - स्नान अर्थात् अभिषेक को

विधाय - करके

भवतः - आपके

अष्ट - आठ

सहस्र - हज़ार

नाम्ना - नाम के

उच्चारणेन - उच्चारण से 

मनसः - मन से

वचसः - वचन से

विशुद्धिम् - विशुद्धि को प्राप्त

जिघृणुः - इच्छा करता हुआ

इष्टम्- पूजा करने की

इन - यहाँ पर

ते - आपकी 

अष्ट-तयीम् - आठ प्रकार के द्रव्यों से

विधातुम् - पूजन करने की 

सिंहासने - सिंहासन पर

विधि-वत् - विधिपूर्वक

अत्र - यहाँ

निवेशयामि - स्थापित करता हूँ

अर्थ - हे जिनेन्द्र भगवान! स्नान अर्थात् आपका अभिषेक करके आपके एक हज़ार आठ नाम के उच्चारण से, मन से, वचन से विशुद्धि को प्राप्त करके आपकी आठ प्रकार के द्रव्यों से पूजा करने की इच्छा करता हुआ यहाँ सिंहासन पर विधिपूर्वक स्थापित करता हूँ।

ऊँ ह्रीं श्रीसिंहासने जिनबिम्बं स्थापयामि।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।


सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏

विनम्र निवेदन

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